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राजनीतिक संरक्षण बना अधिकारीयों का गरम तवा...नदी से नोंच नोंच कर बटोर रहे मलाई...

गरियाबंद जिला यूँ तो प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज संपदाओं से भरा-पूरा है, लेकिन कहते हैं न की "ऐ चाँद खुद पर इतना नाज़ न कर, की तुझ में भी दाग है..." कि कथन शायद यहाँ चरितार्थ है. जी हाँ, जिस जिले के लिए स्वर्गीय पंडित श्याम शंकर मिश्रा जैसे स्वतंत्रता सेनानी के बलिदान, एक तरफ गौरव का विषय हैं, तो वहीँ सन 2012 से अब तक स्वतंत्र जिला के रूप में प्राकृतिक संपदाओं का चीरहनन ही होते देखा गया है. अब तक के शासन काल में किसी न किसी सम्पदा पर आघात करते हुए इस जिले के राजस्व को क्षति ही पहुंचाया गया है. यूँ तो विकास कार्यों का हवाला देकर राज्य सरकार ने रेत की उचित मूल्य पर आपूर्ति के लिए रेत खदानों का तो अनुबंध कराया है, ताकि वैधानिक रूप से रेत की आवश्यकता को राज्य में पूरा किया जा सके, लेकिन हकीकत से रूबरू होना भी ज़रूरी है.

नियम कानून सब ताक पर...
ताज़ा मामला जिले के रेत खदानों को लेकर देखा जा सकता है. जिले के लगभग आधा दर्जन रेट खदान नियम विरुद्ध रेत का भंडारण, रात  के अँधेरे में खदान परिचालन व सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर सीधे नदी से पोकलेन मशीन द्वारा खुदाई कर अपराध तो कर हि रहे हैं साथ ही एन.जी.टी. के नियमों का पालन नहीं कर स्थानीय बेरोज़गारी को बढ़ावा और सबसे अहम् जो की पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षा-रोपण करना है, लेकिन एक भी खदान क्षेत्र में नए पेड़ लगाना तो छोड़ें, बल्कि आवागमन-मार्ग के नाम पर न जाने कितने पेड़ों की बलि ली गयी होगी....जांच का विषय है !

ओहदेदारों की मौनस्विकृती से पनप रहा गोरखधंधा...
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाये गए कदम में 15 जून से 15 अक्तूबर तक सभी रेत खदानों का परिचालन प्रतिबंधित किया गया है. "अवसरवादी लोमड़ियों के लिए अनुकूल समय", यानि प्रतिबंधित समयावधी में भी धंधा चलता रहे इसका इंतज़ाम ! ओहदेदारों ने एक नया फार्मूला निकला है काले को सफ़ेद करने का, स्वीकृत खदानों के ठेकेदारों को रेत का भंडारण करने की अनुमति दे कर. न नाप-तोल न समय की पाबंदी और न ही नुक्सान का डर...अब तो हल भी अपना और खेत भी अपनी. नदियों का सीना चीर कर सैंकड़ों टन रेत का भंडारण जहाँ नियम विरुद्ध पहले से हि किया जा चूका है, वहीं अब प्रतिबंधित समय में भी ओहदेदारों और माफियाओं के सम्बन्ध गहराते जा रहे हैं....जांच का विषय है !

खनिज-नीति हुआ फेल, मजबूर प्रशासनिक अमला...
आपको याद दिलाते चले कि पूर्व में जैसा की छत्तीसगढ़ खनिज-नीति के अनुसार ग्राम पंचायतों के अधीन रेत खदानों का संचालन होता था, वहीँ शासन बदलते हि खनिज निति में संशोधन कर इलेक्ट्रोनिक निविदा के माध्यम से खनन हेतु निजी कंपनियों को रक्बा आबंटित किया गया है. बावजूद सरकारी फरमान के परिपालन, अब तो सरकारी अमला भी संरक्षण देता प्रतीत होता है. ताज़ा मामला ज़िले के फिंगेश्वर तहसील के ग्राम बोरिद का है, जहाँ पिछले 2-4 दिनों से बिना कोई स्वीकृत खदान जिसे महीनों पहले अवैध खनन के सिलसिले में सील किया गया था, रात के समय खनन और परिवहन की सूचना मिल रही थी. सोमवार के दोपहर उत्खनन स्थल पर फिंगेश्वर राजस्व अमले ने दबिश दी. शुत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मौके पर चेन माउंटेन पोकलेन मशीन भी मौजूद था, लेकिन अमले के बैरंग वापस लौटने की खबर ने फ़िर ताज़ा संदिग्ध मामला बनाया है. यानि सरकार किसी की भी रहे, पर अवैध खनन जारी रहेगा....जांच का विषय है !

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार अवैध खनन को संरक्षण दे रही है या उसके नुमाइंदे खनन माफिया की पैरोकारी कर रहे हैं. ये सवाल उठना लाजिमी है क्योंकि बिना राजनीतिक संरक्षण के इतनी बड़ी मात्रा में अवैध खनन होना कमोबेश इसी तरफ इशारा करता है.

Byte : फागुलाल नागेश, खनीज अधिकारी, गरियाबंद
     कोरोना वैक्सीन लगने के कारण विभाग के हम दोनों अधिकारी अस्वस्थ हैं, लेकिन जैसा कि आपके द्वारा जानकारी मिली है, मैं राजस्व विभाग से बात करके कार्यवाही करवाता हूँ.

कार्यवाही के आश्वासन के बाद खबर लिखे जाने तक जब मामला वापस मेहरबान विभाग की झोली में जाता दिखा तब ज़िला के प्रथम अधिकारी यानी अब ज़िला कलेक्टर को मामले की संज्ञान देने का प्रयास जारी है. देखना यह होगा की ज़िले के कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी कब तक हरकत में आते हैं, या प्रथा अनुसार नदियों का चीरहनन जारी रहेगा ?

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