गरियाबंद : मूलनिवासियों के मानवाधिकारों को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक कार्यदल के उपआयोग का गठन किया। जिसकी पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी।
इसलिए हर साल 9 अगस्त को विश्व मूलनिवासी दिवस यू.एन.ओ. द्वारा अपने कार्यालय में एवं अपने सदस्य देशों को मनाने निर्देशित किया।
यू.एन.ओ.ने यह महसूस किया था कि 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत मूलनिवासी समाज उपेक्षा,बेरोजगारी,बंधुआ और बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से ग्रसित है। 1993 में यू.एन.ओ.के कार्य दल के 11 वें अधिवेशन में मूलनिवासी घोषणा के प्रारूप को मान्यता मिलने पर 1994 को मूलनिवासी वर्ष व 9 अगस्त को मूलनिवासी दिवस घोषित किया गया।
मूलनिवासियों को उनके अधिकार दिलाने और उनकी समस्याओं का निराकरण,भाषा,संस्कृति,इतिहास के संरक्षण के लिए यू.एन.ओ.की महासभा द्वारा 9 अगस्त 1994 को जेनेवा में विश्व के मूलनिवासी प्रतिनिधियों का विश्व का प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय मूलनिवासी दिवस सम्मेलन का आयोजित किया गया।तभी से 9 अगस्त को विश्व मूल निवासी दिवस और भारत में आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा है।
उक्त बातें गरियाबंद जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष राकेशतिवारी ने कही है और आगे कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर आदिवासी मूलनिवासियों को शुभकामनाएं देते हुए ऊनके मौलिक अधिकारों और हितो की रक्षा के लिए संघर्ष में साथ खड़े रहेंगे।
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