प्राकृतिक संपदा से भरपूर है गरियाबंद...
छत्तीसगढ़ प्रदेश में गरियाबंद जिला अपना एक अलग ही पहचान रखता है. गरियाबंद जिले की धरती में प्राकृतिक धन-संपदा की कमी नहीं है. जिले में हीरा खदान, मुरम खदान, बोल्डर खदान से लेकर गिट्टी, रेत और ईंट जैसी गौढ़ खनिजों की उपलब्धता है. लेकिन जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा इन प्राकृतिक संपदाओं को लेकर कभी भी गंभीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया गया.
रेत तस्करों का अड्डा बना गरियाबंद...
कुछ रेत तस्करों के द्वारा यहां की नदियों के अस्तित्व पर हमला किया जा रहा है. बालू तस्कर जिले की हर छोटी बड़ी नदियों को अपना शिकार बना रहा है. चाहे जिला मुख्यालय हो या राजिम-फिंगेश्वर की जीवनदायनी कही जाने वाली महानदी हो या चाहे सूखानदी, गरियाबंद-महासमुन्चद-रायपुर के बॉर्डर पर मिलने वाली महानदी-सूखानदी के तटवर्ती गाँव हथखोज में रेत तस्करों का अड्डा बना हुआ है.
क्या रेत माफियाओं को मिल रहा है राजनीतिक संरक्षण???
हमारी टीम ने जब गाँव के सरपंच से रेत उत्खनन पर जानकारी लेने के लिए संपर्क किया तब सरपंचप्रतिनिधि ने फ़ोन पर बताया की गांव में 2 खदानें चल रही हैं, जिसमें से एक शासकीय अनुबंद्ध के तहत संचालित है और दूसरी खदान में बिना प्रशासनिक स्वीकृति के महज ग्रामीणों के मर्जी से खनन किया जा रहा है, जबकि सच्चाई इसके विपरित है. आपको बता दें कि महानदी के हथखोज क्षेत्र के अलग-अलग रकबों में तीन चैन-माउंटेन मशीन द्वारा अंधाधून खोदाई हो रही है, जिसपर सरपंचप्रतिनिधि ने रेट कम होने के कारण मजदूरों से लोडिंग न करवाकर मशीन द्वारा सीधे नदी से खनन का काम किया जा रहा है की बात कही. साथ ही उन्होंने ने बताया की पूर्व में एस.डी.एम. एवं तहसीलदार को अवैध खनन के बारे में अवगत कराया गया था और अब फिर से अवैध गतिविधियों की लिखित शिकायत की जाएगी. लेकिन सवाल ये उठता है की शिकायतों और कार्यवाहियों के बावजूद गोरख धंधा कैसे फल फूल रहा है? क्या स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्रात किए बिना रेत खदान चलाना संभव है ? जहाँ एक ओर छत्तीसगढ़ और जिले के राजिम विधानसभा में सत्तापरिवर्तन के बाद भाजपा नेताओं की मौजूदगी में, एक स्वीकृत खदान के पीछे कई अवैध खदानों का संचालन करना, अमानक तरीके का उपयोग करना, पर्यावरण के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैय्या पर स्थानीय ग्रामीणों में चर्चा है कि कहीं ना कहीं नवीन विधायक से संबंध रखने वाले लोगों का कारोबार है, यही वजह है कि जिला प्रशासन इस अनैतिक कार्य पर हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा है. तो वहीं दूसरी ओर वास्तविक्ता दिखलने वाले पत्रकारों के ख़बरों को लेकर माफियाओं में व्यंग भी कई प्रचलित हो रहे हैं, कहीं वसूली, तो कहीं फर्जी के नाम भी जोरों से फैलाये गए हैं. लेकिन वास्तविकता यही है की करोड़ों की संपदा का दोहन अधिकारी, नेता और माफियाओं के सांठ-गांठ का ही परिणाम है.
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