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खनिज विभाग का गज़ब कारनामा...खनन माफ़ियाओं की पौ-बहार...

गरियाबंद/राजिम : मामला जिले के जनपद पंचायत फिंगेश्वर के राजिम तहसील का है, जहाँ महानदी के तटवर्ती क्षेत्रों में से, हथखोज गांव से लगे नदी घाट से उत्खखनन हेतु निविदा दी गयी है. यहाँ बिना मानकों के बड़े पैमाने पर गौढ़-खनिज (रेत) सम्पदा का दोहन कर माफ़िया माल जुटाने में लगे हैं. बता दें की ग्राम हथखोज, परसदाजोशी और रावड़ से इन दिनों बेख़ौफ़ रेत की ढुलाई चल रही है.



आचार संहिता में इलेक्ट्रल बॉन्ड के जगह काम कर रहा खनिज बॉन्ड...

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए आचार संहिता लगे लगभग सप्ताह भर होने को है. जहाँ चुनाव आयोग के दिशा निर्देशों के अनुसार अवैध गतिविधियों पर प्रशासन द्वारा विराम लगाना चाहिए, वहीं कुछ अल्पविरामों के बाद फिर से संचालित अवैध रूप से रेत उत्खनन और परिवहन ये साफ़ कर रहा है, कि कहीं न कहीं राजनितिक तार से ही यहाँ के कारोबार को पॉवर सप्लाई होती है. प्रदेश के साथ राजिम विधानसभा और महासमुन्द लोकसभा में भी भाजपा की हुकूमत चल रही है और जैसा की इनदिनों देशव्यापी मुद्दा "इलेक्ट्रल बॉन्ड" ने भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा रखी है, शायद विभागीय अधिकारीयों और माफियाओं द्वारा कोई "खनिज बॉन्ड" भाजपा सरकार को चुनाव में गुप्त मदद कर रहा हो, जिसके नतीजतन धड़ल्ले और बेख़ौफ़तौर पर गोरखधंदा सुचारू संचालित है. अगर जांच हो तो शायद कोई "खनिज बॉन्ड" नाम का काँटा भी निकल आये !!!



वैध के पीछे अवैध खदान...

गौरतलब है की खनिज विभाग द्वारा रेत खदानों को नियम और कानून से चलाने के लिए शासकीय ठेका दे रखा है, बावजूद इसके ठेकेदार और कई माफिया मौके के तलाश में रहते हैं, जहाँ वैध स्वीकृति देखी चले आये बहती गंगा में हाथ धोने. संज्ञान में हो की प्राप्त जानकारी के अनुसार जहाँ हथखोज में केवल एक घाट की ही स्वीकृति दी गयी है, लेकिन साथ ही कई अन्य रकबों में भी खनन होते देखा जा सकता है. यह बताने वाली बात बिलकुल नहीं की कैसे और कौन है इन अवैध खुदाई के पीछे.



वैध खदान ने भी नहीं चुकाया पर्यावरण का कर्ज...

तो जहाँ वैध खदान के पीछे नदी के कई और हिस्से को माफ़िया तो अपना निशाना बना चुके हैं, तो वहीं वैध स्वीकृत शासकीय खदानें कहे जाने वाले खदान संचालक भी कानून और नियमों के कागज़ी दस्तावेज़ को सहमति देने के बाद उन अधिकारीयों के कार्यालयों में ही अनुपालन की बातों को छोड़कर खदान संचालन करते हैं. सुप्रीम कोर्ट,  राष्ट्रीय हरित अधिकरण संस्था (NGT) और पर्यावरण विभाग के लाख आदेशों और हेदायतों के बावजूद ठेकेदार मानकों के अनुरूप खदान संचालन नहीं कर रहे. विभिन्न विभागों द्वारा जारी अनापत्ति प्रमाण पत्रों को हासिल करना तो इन ठेकेदारों के लिए जरूर मामूली होगा लेकिन उन अनापत्ति प्रमाण पत्रों को हासिल करने की शर्तों को ये खनन स्थल में ही दफ़ना देते हैं, न ही कोई वृक्ष रोपण और न कोई स्थानीय विकास कार्य. ऊपर से बड़ी-बड़ी मशीनों को किसी तोप की तरह इस्तेमाल कर नदी से जंग लड़ने की तर्ज़ पर सीधा नदी में उतार कर रेत को नोचे जा रहे हैं. खनन क्षेत्र में मशीनों से खनन की अनुमति नहीं होने के बावजूद अधिकारीयों के नाक तले उलंघन को अंजाम दिया जा रहा है. हाईवा ट्रकों को लम्बी कतारों में खड़ा कर ठूंस-ठूंस कर, नहीं बल्कि क्षमता से भी ज्यादा लाद कर इस तरह से निकल रहे जैसे कोई जंग के बाद बचा माल लूटा जाता है. क्योकि जहाँ इन रेत परिवहन में लगे ट्रकों में भरे रेत का वजन होना चाहिए वे धर्म-कांटों को व्यापारियों के घर में लगाया गया है, जहाँ पहुँचने के बाद वजन कर कारोबारी संतुष्ट हो जाते हैं.



देखा-देखी शुरू हुआ रेत का कारोबार...

जैसाकि आपने जाना की कैसे हथखोज में दीन-दहाड़े मशीनों से वैध और अवैध खनन को अंजाम दिया जा रहा है. आगे हर दो से ढाई किलोमीटर में पड़ने वाले गांव के सरहदी नदी क्षेत्रों में भी कुछ मिलता जुलता हाल देख गया. हथखोज के बाद परसदाजोशी और फिर रावड़ में भी बिना किसी वैधानिक अनुमति के मशीनों को नदियों से जंग लड़ते देता गया. कुछ को खनन माफिया और कुछ को स्थानीय खड़े कोलर वालों ने धन छपने का अड्डा बना रखा है. स्थानीय होने का फायदा तो मिलना चाहिए, क्यों ? कुछ गांवों के लोगों को और कुछ अधिकारीगणों में प्रशाद भंडारा करा देने से आत्मा तो शांत हो ही जाति है न, फिर कोतवाल बने सईयां तो डर और कहे का !!!


होली की खुमारी में विलीन जिला प्रशासन...

जिले के वनांचल क्षेत्रों में खानिजिया कार्यवाही निरंतर विभाग के कुशल प्रहरिता को दर्शत है, लेकिन कार्यवाही प्रणाली पर सवाल तो उठते ही रहते हैं. लेकिन जब बात ऐसे स्थान की हो जहाँ की आबो-हवा में कई तरह की गर्मी रहती हो, तब मामले को ठंडा होते देर नहीं. कार्यवाही के बाद जहाँ वाहवाही होनी चाहिए वहीं भाई-भाई होने लगता है. आपको बता दे की कुछ दिनों पहले रावड में भी ऐसा कुछ सुना गया था, खनिज विभाग द्वारा अवैध खनन के रोक-थाम के लिए रेत परिवहन के कच्चे मार्ग को बंद किया गया था लेकिन इतनी जल्दी फिर से खनन कार्य चालू होना इस बात की ओर इशारा करता है की साहब रास्ते को बंद नहीं बल्कि अपना रास्ता खोल कर गए और अब होली चैन के साथ मनायेंगे और इधर लूट मची रहे. वहीं यातायात विभाग अलग से योगदान दे रहा है, न ही कोई चेक पॉइंट पर दस्तावेजों की जांच, न कभी किसी रेत परिवहन में लगे हाइवा ट्रकों का चालान, न कभी ओवरलोडिंग पर कोई कार्यवाही. करें भी क्यों, होली जो है...हैप्पी होली !!!


छोटे-मोटे कार्यवाही से छुपाया जाता कमीशन खोरी का खेल...

जैसा की आपने जाना की कैसे अवैध गतिविधियों पर अल्पविराम के लिए रस्ते को बंद किया गया था, साथ ही जानकारी में यह भी आया की साहब ने तो दो बड़ी मशीनों को भी उसी घाट में अवैध खनन के आरोप में जप्त कर मौके पर सील भी किया था. लेकिन छोटी-छोटी कार्यवाहियों से ख़बरों में आने वाला विभाग इतनी बड़ी कार्यवाही को आखिर क्यों छुपा गया. अच्छा तो कुछ दीन बाद इसका जवाब सामने आना था, और बड़े रूप में खनन का दृश्य बनकर. इस कारोबार से जुड़े कुछ हारे हुए बताते हैं की कैसे उन्हें छोटी कार्यवाही के बाद बड़ी निजी जिम्मेदारी सौपी गयी जिसके पूरा नहीं होने के कारण वे खुद को इस क्षेत्र का हारा हुआ खिलाडी कहते हैं. और साथ ही दिन-ब-दिन इस कारोबार का बढ़ता जाना कमीशनखोरी के जड़ को गहराता जा रहा है.

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